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निखिल कुमार अंजान

Abstract

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निखिल कुमार अंजान

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मै क्या हूँ......

मै क्या हूँ......

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मै क्या हूँ

इसकी तलाश मे जिंदगी रही

अपनी तो खुली किताब सी

जिंदगी रही,

पन्ना दर पन्ना बेहिसाब सी

जिंदगी रही,

कुछ कठिन सवालों के

अनकहे जबाव सी 

जिंदगी रही,

खोजता फिर रहा हूँ

अंजान की पहचान को

ऐसे सफर के निशान सी

जिंदगी रही,

ठोकरें भी मिली राहों मे

बावजूद इसके जिंदगी से

अंजान की पहचान अंजान

सी रही

वक्त के संग दौर भी बदलता गया 

अंजान राहों पे मै चलता गया

सफर मे बरसात भी हुई

गर्मी की तपिश भी सही

सर्दी की सुनहली धूप भी मिली

उतार चढ़ाव वाला सफर सी

जिंदगी रही

जन्म से जारी है जो सफर

मृत्यु तक चलेगा

मै क्या हूँ

अंत तक खोजता रहेगा..........! 



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