ग़ज़ल...19
ग़ज़ल...19
ख़ुदा दर्द की अब दुहाई न दे,
किसी की बुराई दिखाई न दे।
हया शर्म सब भूलते हैं यहॉं,
मुझे प्यार में बेहयाई न दे।
सभी रो रहे हैं दिले बेखबर,
दिलों में दिलों की ही खाई न दे।
सरेआम जो लोग नीलाम हों,
उन्हें सोच में दिलरुबाई न दे ।
घमंडी सभी हो गए हैं सुनो,
मुझे आज कोई सफाई न दे ।
वतन में वतन से लड़े जो कभी,
कि ऐसे हमें बन्धु भाई न दे ।
वतन ही मिरा प्यार है यार है,
मिरे देश में जग हंसाई न दे ।
कि आतंक दहशत सभी दूर कर,
वतन काटते यूं कसाई न दे।
कि वीरान 'गुलशन' दुआ मॉंगता,
किसी को वतन से ज़ुदाई न दे ।