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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Fantasy Inspirational Others

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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Fantasy Inspirational Others

रज रज बनैं अबीर..

रज रज बनैं अबीर..

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कलकल बहती पावन नदियां,गावैं प्रेमिल नीर ।

सोहै माटी जैसे चन्दन ,रज-रज बनैं अबीर ।।


ध्वजा पताका देखो कैसे,फहर-फहर के फहरैं ।

मानो गंगा की धारा सह,लहर-लहर के लहरैं ।।

अहम द्वेष को छोड़ों भाई,भरें वही किलकारी ।

अकड़ रहा था कैसे देखो ,टूटा पड़ा शमशीर...

खुशहाली की खातिर मिटते ,कई यहॉं रणधीर ...


हॅंसकर जीना ही जीना है,काहे रोना धोना ।

विपदा कैसे आई थी जी,कलमुंही कोरोना ।।

ना ना कहना इसको साथी,हॅंसना है गुणकारी ।

खुश हो लो, तुम शेष बचे हो ,राख हुए गंभीर..

आत्मा कहीं न मिटता मरता,मिलता नया शरीर ...


गहराई में आखिर कबतक ,गहर गहर के गहरैं ।

सच के सम्मुख बुजदिल इक दिन,हहर हहर के हहरैं ।।

जीवन नदिया बहती धारा,धारा है हितकारी ।

तू भी इक दिन माटी होगा ,कह गये दास कबीर ..

जिसने इसको जान लिया है,बन गये संत फकीर ....


भैया भाभी को देखैं अउ,फूट रहीं हैं मणियां ।

चुपके-चुपके आलिंगन हॉं ,लिपट रही वल्लरियां ।।

बहनों ने भी खूब उड़ेला,रंगों की पिचकारी ।

अनबन भीजैं,तन मन भीजैं,भीजैं सारी चीर..

होली मीठी बोली मीठी, मॉं के हाथों खीर ...


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