भीड़
भीड़


हाँ इस राह से गए हैं वे लोग
पेड़ अभी तक जल रहे हैं
और रो भी रहे हैं
अँधेरा अभी तक काँप रहा है !
ये रहे उनके पैरों के निशान
खून के धब्बे
और फटे हुए कपड़े भी
वहीं पड़े थे...
यह लोग जिस राह से जाते हैं
कुछ ऐसा ही मंज़र होता है
उस गाँव में सारे जानवर
अभी तक चिल्ला रहे हैं
बच्चे अभी तक सोये नहीं हैं
हाँ महिलाओ ने अपने फटे हुए कपड़े
ज़रूर सिल लिए हैं
क्योंकि आज सुबह किसी ने बताया कि
खान चाचा नहीं रहे हैं !
वे गाँव के दर्ज़ी थे...
कुछ औरतें अपनी टूटी हुई चूड़ियाँ
जोड़ने में लगी थीं
और कुछ अपना सि
न्दूर लाने में
जो अब मिट गया था...
उस रात किसी ने मुझे बताया तो था कि
कानून भी रहता है इस गाँव में
पर वह शायद नींद की गोली खाकर सो गया था
उसकी भी तो गलती नहीं थी
कानून अँधा होता है
वह वैसे भी कुछ देख नहीं सकता !
आगे बड़ा तो देखा कि
उस राह में सारे संगीत, सारे शब्द, सारे मंत्र पड़े हुए थे
और बस एक ही नारा था
वह भीड़ थी और भीड़ में इंसान, इंसान नहीं रहता
भीड़ बन जाता !
वो भीड़, हाँ ! इसी राह से गयी थी
और मैं भीड़ में इंसान ढूंढ रहा था
पर वो तो भीड़ थी
और भीड़ हमेशा भीड़ ही रहती है
हाँ ! इस राह से गए हैं वो लोग...।।