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तुम मिलना चाहती हो

तुम मिलना चाहती हो

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तुम आना चाहती हो दिल्ली मेरे साथ

मेरे घर

जो कहीं पुरानी दिल्ली की तंग गलियों में आज से १०० साल पहले के युग की याद दिलाता है

रिक्शा भी नहीं जाता घर के सामने तक

और तुम्हें तो सीधा घर से गाड़ी में

बैठकर जाने की आदत है

तुम मिलो मेरे इस घर से

जिसमें मेरे दादा की वीर गाथाएँ

और मेरी दादी के तमाम तज़ुर्बे लिखे हैं


तुम मिलना चाहती हो मेरी माँ से

कोई हर्ज़ नहीं है

मैं भी यही चाहता हूँ

बल्कि ख़ुद तुम्हें उनसे मिलवाना चाहता हूँ


पर वो 'हग' नहीं करती

हाथ भी नहीं मिलाती

हाँ ! आशीर्वाद के लिए

सिर पर हाथ ज़रूर रखती है

पर तुम मिलो और जानो कि

वो किटी पार्टी में भी नहीं जाती

पर घर पर आये लोगों को

बिना खाये जाने नहीं देती

महंगी साड़ी तो नहीं पहनती है

पर सादे लिबास में भी

चेहरे पर नूर है


तुम मिलो मेरे सारे घरवालों से

मेरे भाई से जो छोटा है

और छोटे जैसा ही है

एक बहन है जिसके बारे में

तुमने ख़ूब सुना है

दिल से काम लेती है

दिमाग़ की नहीं सुनती

पता नहीं तुम्हें समझ पाएगी या नहीं


पर तुम मिलो मेरे घरवालों से

मेरे पापा से जो ऑटो चलाते हैं

कोई घर का ना जान जाए

इसलिए ऑटो कहीं दूर पार्क कर आते हैं

ऑटो के कपड़े छुप के रात में धुलाते है


अब तो तुम सब से मिल चुकी हो

तो ऐसा करते हैं

अब हम भी एक दूसरे से मिल लेते हैं


शायद दोबारा मिलना बहुत ज़रूरी है...!





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