मुहब्बत
मुहब्बत
मुहब्बत आम से खास बना देती है,
दिल की इस धड़कन को ओर धड़का देती है,
ये इश्क जब सर पर चढ़ जाए,
तो रांझे को भी फ़कीर बना देती है,
इसकी हर राह में बिछे कांटे हैं,
वहां मंजिल नहीं मिलती,
यहां मिलते धर्म और जाति है,
जो इसे पार करे वो फिर वापिस ना आए,
जब आए तो कभी कफ़न में या
किसी की याद बन कर आए,
इस इश्क के खेल ने सब को बर्बाद किया,
उंगलियों पर नचा कर इस
"जीत" को भरी महफिल में बदनाम किया,
दुनिया की इस महफिल में बदनाम किया,
उसे बदनाम किया।