बदलता वक्त
बदलता वक्त
अजीब दौर में पहुंच गए हम
हालत कैसे बयां करूं
सच सबूत को जुटाता फिरता,
झूठ को मैं वफादार कहूं।।
चतुर-चालाक सदा बच निकलता
सीधे-सच्चे को बदनाम करूं
मखौठे पहनकर लोग है मिलते,
किसको-किसका वफादार कहूं।।
अपने होने का अहसास दिलाते
हर बार उनसे घाव सहूँ
हमदर्दी सदा ऐसे दिखाते,
जैसे उनसे अच्छा न कोई और कहूं।।
छुप-छुपकर कुछ वार है कराते
गीदड़ भेष में मित्र कहूं
वक्त पड़ने पर सदा दगा ही देते,
मैं भलाई में सब कुछ सहता चलूं।।
एक हाथ से ताली न बजती
सच्ची भी मैं ये बात कहूं
इंसानियत के लिए जो जीता हरदम,
उसको मूर्ख सदा बेवकूफ कहूं।।