इंतजार उस खामोशी का
इंतजार उस खामोशी का
खामोशी,
कहने को तो महज अल्फ़ाज़ है,
लेकिन इसका अर्थ कुछ और है,
खुद में इतने सारे अल्फाजों को समेटे हुए।
अल्फाजों की धारणा बदलते हुए,
बदलते अल्फाजों का,
खुद के अंदर पीछा करते हुए
ना जाने कहाँ तक पहुँच जाती हैं।
कभी कुछ और तो कभी कुछ और,
अनंत आकाश की भांति बढ़ते हुए,
बिना लगाम के बढ़ती जाती है,
फिर जब तक सी जाती है,
तब वापसी का रास्ता तलाशती है।
और वापसी का रास्ता भी इतना सरल,
बस एक अवाक आवाज़ की जरूरत है,
फिर खामोशी तो दूर सी हो जाती है,
लेकिन क्या इसको खामोशी का टूटना कहेंगे।
नहीं,
नहीं कह सकते,
यह तो उस खामोशी का ध्यान भंग करना हुआ,
उसकी अनन्त आकाश की यात्रा में अवरोध डालना हुआ,
उसके अनगिनत बढ़ते मार्ग को नष्ट करना हुआ।
लेकिन,
लेकिन वह इन छोटी घटनाओं से नहीं रुकेगी,
शायद उसका ध्यान कुछ पल के लिए भंग हो जाए,
लेकिन उसका सरल मार्ग कहीं और है,
उसके पहुँचने की चाहत भी अनंत है,
इन छोटी-छोटी कंकरो की भांति अवरोधों से,
उस खामोशी का क्या होगा।
कुछ नहीं,
कुछ नहीं ये तुच्छ अवरोध उसका,
ये अपने सुगम मार्ग के दुर्गम,
रास्तों से होते हुए आगे बढ़ेगी,
उसे अपनी मंज़िल हासिल करनी है।
और,
जब उसे मंज़िल मिल जाएगी,
तब,
तब एक हल्की सी आहट से,
उसकी अनंत खामोशी टूटेगी,
और टूट कर उसकी ज़िन्दगी बदल देगी,
शायद इसलिए वह इतना ख़ामोश है,
शायद इसीलिए वह इतना आगे बढ़ रहा था,
शायद इसीलिए उसने इस अनंत खामोशी को चुना।
ऐसी खामोशी जिसने उसे उसके जीवन की राह दिखाई,
उसके जीवन को नया रंग रूप दिया,
उसके जीने की अवधारणा बदल दी,
शायद यही वो खामोशी है,
जिसका मुझे बेसर्ब्री से इंतजार है।
