मंजिल पे कदम हम बढ़ाते रहे
मंजिल पे कदम हम बढ़ाते रहे
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गिराने वाले तो मुझको गिराते रहे,
हर कदम पर मुझको आजमाते रहे ।
पांव के छालों का दर्द भूलकर,
मंजिल पे कदम हम बढ़ाते रहे ।।
वो नफरत की आंधी चलाते रहे,
हम मुहब्बत जहां की लुटाते रहे ।
जख्म देने वाले दर्द देकर गए,
हम दर्द सह कर भी मुस्कुराते रहे ।।
दर्द के सिवा कुछ नहीं जिंदगी में,
दर्द को मरहम हम बनाते रहे ।
जिनको दिल में बसाया था हमने,
वो ही घर को मेरे अब जलाते रहे।।