हैवानियत
हैवानियत
बहुत लाडली थी मां बाप की अपने,
उसकी आंखों में थे, अनेक जीवित सपने,
बूढ़े बाप का ने उसे, अच्छे से पढ़ाया था,
आगे बढ़ने का साहस, उसके मन में जगाया था।।
छोटी छोटी खुशियों, वो अक्सर खुश हो जाती थी,
हौसलों के पंख लगा कर, अंबर को छू जाती थी।।
एक रात वो कार्यालय से, रात्रि में घर को आ रही थी,
सन्नाटा पसरा हुआ था, मन में वो घबरा रही थी ।।
तभी दुष्ट लोगों की, उस पर दृष्टि पड़ जाती है,
हिरनी के जैसी घबराई, संकट भांप जाती है,
इंसान के रूप में छुपे, भेड़ियों को पहचान जाती है।।
चीखी पुकारी बहुत मगर, न किसी ने उसकी न पुकार सुनी,
आज के युग की नारी, कुछ ऐसे दरिंदो की शिकार बनी।।
हाय! अबला पुकार रही है, पर कोई श्याम नही आया,
अस्मत तार तार हुई, पर कोई भी बचाने नही आया ।।
कब तक बोलो नारी, इस पीड़ा को सहती जायेगी,
क्या सच में भी कभी सड़क पे, वो निर्भय भी चल पाएगी।।
ऐसे दरिंदो को तुरंत ही, फांसी पर चढ़ा देना,
कोई बेटी बर्बाद न हो, ऐसा परिवेश बना देना।।
