माँ और पिता की
माँ और पिता की
माँ और पिता की,
मैं लाठी बनूँगी मैया और पिता की
भैया की कलाई पर,
मैं राखी बनूँगी।
छंट जायेगा अँधेरा,
धीरे-धीरे से
हौले- हौले से
हर गम को जो जला दे,
वो ज्योति बनूँगी।
न गीत – न ग़ज़ल मैं,
न वानी बनूँगी
न फूल ख़ुशबुओं के,
न पुर्वा सुहानी बनूँगी।
रहती है जो हर पल,
कान्हा के अधर पर,
गाती-मुस्कुराती वो बंशी बनूँगी।
न भावुक – न कोमल,
फुलवारी बनूँगी
न निर्बल –न अबला,
मैं नारी बनूँगी।
रहती थी जिसके
हाथों में ढाल और तलवार
वीरांगना झाँसी की
रानी बनूँगी।