सिर पर चढ़ाया बेटे को ...
सिर पर चढ़ाया बेटे को ...
वो बन गया है राक्षस वो बनी देवियाँ हैं
लहू देकर हमने सींचा था जिस पौधे को
आज वही जड़ को उखाड़ने चला है,
आज बेटा ही माँ-बाप को मारने चला है
बेटियों को धिक्कार दिया था हमने,
दर्द के सिवा कुछ ताने दिये थे हमने
इतने सितम लेकर भी इस बोझ को
ढो रहीं हैं
वो आज भी हमको भगवान सा पूज
रहीं हैं
ऐ ख़ुदा तू सबको इक बेटी ज़रूर देना
बेटा न पोंछेगा आँसू तो बेटी तो पोछ देगी
हर दर्द को सहकर भी वो सबको ख़ुशी देगी
बेटी है जैसी आज वैसी ही कल रहेगी