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Gaurav Hindustani

Tragedy

5.0  

Gaurav Hindustani

Tragedy

खुशियाँ तो हैं इस जहाँ में ..

खुशियाँ तो हैं इस जहाँ में ..

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खुशियाँ तो हैं इस जहाँ में,

पर गम भी तो हैं

लाख होठों पर मुस्कराहट है हमारे

पर आँखें नम भी तो हैं,

कैसे छुपायें यारों गरीबी इस जहाँ से,

चौखट पर पर्दे तो हैं हमारी

पर कम्बख्त हवा के रुख भी तो हैं।


अकेला होता तो सिर्फ

पानी से भी भूख मिटा लेता,

पर मासूम बच्चे भी तो हैं

बस आज भूखे रहते तो

ये भी खुशी से सो जाते,

पर आने वाले कल भी तो हैं ।


होली पर न रंग हैं

न दीवाली पर दिये हैं,

हमारे घर के सिवा बाकी

सब के घर सजे हैं,

जलता नहीं मैं किसी के ऐशो आराम से,

बिखर जाता हूँ मैं बिटिया के सवाल से

जब पूछती है पापा अभी

गरीबी के कितने दिन और बचे हैं ।


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