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Madhu Vashishta

Action Inspirational

4  

Madhu Vashishta

Action Inspirational

शत्रु भाव

शत्रु भाव

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बात तो सही थी जो आज के बच्चों ने कही थी।

मिलकर सब बैठे थे और हंसी ठिठोली करते थे।   

संस्कार सिखाने का माताजी को रोग था।

कभी रामायण कभी भगवद् गीता थीं लाती,

पार्क में बैठे बच्चों को सुनाना थी वह चाहतीं।

कभी नैतिक विज्ञान की किताबें बच्चों को थी बांटती।


उस दिन बच्चों की टोली में से राजू ने पूछा,

अम्मा रोज तुम हमको एक पाठ जो पढ़ाती हो।

रावण और कंस के बारे में भी बताती हो।

दोनों ने कभी था क्या किसी भगवान को था पूजा?

फिर भी तो उनको भगवान ने उत्तम स्थान दिया।

उनके लिए खुद धरती पर आए, उन्हें मार कर के उनको मोक्ष प्रदान किया।


हम अगर दुष्ट नास्तिक हैं तो हमें भला चिंता किस बात की।

हम अपनी दुष्टता बढ़ाएंगे और हमारे लिए भी भगवान खुद आएंगे।

यूं ही बच्चों ने मिलकर माताजी का उपहास किया।

तभी मुस्कुराते हुए माताजी ने बच्चों को जवाब दिया।

तुम्हारी बात ठीक है बच्चों आओ तुम्हें समझाती हूं।

शत्रु भाव भी पूजा का ही एक भाव है, यह मैं तुम्हें बताती हूं।

शत्रु का नाम भी हर वक्त दिमाग में बसता है।

मित्रों से भी ज्यादा मनुष्य शत्रुओं को याद करता है।

कोई बुराई नहीं यदि तुम्हारे लिए भी परमात्मा खुद आएं

पर कहीं ऐसा ना हो कि तुम तो पाप का घड़ा ही भरते रह जाओ

और उससे पहले कोई और ही तुम्हें मार जाए।


रावण और कंस इतने बड़े महाज्ञानी और बेहद बलशाली थे।

उन्हें पता था इस दुनिया में उन्हें कोई हरा ना पाएगा।

मोक्ष उन्हें तो तभी मिलेगा जब परमात्मा उन्हें मारने खुद आएगा।

उनके जैसा बनने के लिए भी ज्ञान तुम्हें लेना होगा।

शक्ति पास नहीं है तुम्हारे व्यर्थ में दंभ तुम करते हो,

नैतिक ज्ञान भी तुम में नहीं माता-पिता को तंग तुम करते हो।

सारे बच्चे सोच में पड़ गए माता जी के चरण छू कर दूर हुए।

नैतिक विज्ञान की पुस्तक खोली और उसे पढ़ने को मजबूर हुए।

माताजी ने उनके ज्ञान की दिशा ही बदल डाली।


आज उन्हें कंस और रावण भी लग रहे थे महा ज्ञानी।

शत्रु भाव रखने के लिए भी नैतिक बल रखना होगा।                  

भले ही वे शत्रु सा व्यवहार करें पर मन में तो संयम रखना होगा।


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