प्रकृति से छेड़छाड़
प्रकृति से छेड़छाड़
जब-जब जड़ता दिखला मानव
मनमानी अति करने लग जाएगा।
प्रतिक्षण प्रकृति के रौद्र रूप का
कटुतर प्रतिफल भोग पछताएगा।
वसुधा के वक्ष से हरीतिमा नोच,
अति असंतुलित पर्यावरण किया।
बुद्धि बल प्रयोग नहीं कर पाया,
जन वृद्धि को नासमझी में किया।
प्रकृति का नासमझी से कर दोहन,
सुख-चैन से कब-कैसे रह पाएगा?
जब-जब जड़ता दिखला मानव
मनमानी अति करने लग जाएगा।
प्रतिक्षण प्रकृति के रौद्र रूप का
कटुतर प्रतिफल भोग पछताएगा।
पालन-पोषण पानी भोजन पर्याप्त,
है प्रकृति परमेश्वर की थाली में।
है सोम तरु पुष्पों और पल्लवों में,
कंद-मूल और सरस मधु प्याली में।
तिक्त-तृष्णाओं और घने प्रलोभन का,
घटिया-घट तो अब कैसे भर पाएगा?
जब-जब जड़ता दिखला मानव
मनमानी अति करने लग जाएगा।
प्रतिक्षण प्रकृति के रौद्र रूप का
कटुतर प्रतिफल भोग पछताएगा।
इन्द्रिय जनित सुखों की संतुष्टि हेतु,
अनाचार कब तक कुदरत सह पाएगी।
जब पानी सिर ऊपर से गुजरेगा तब,
थककर दण्ड का चक्रपाश घुमाएगी।
अपने अत्याचारों के कुचक्र का फल,
बहु प्राण गंवाकर ही यह नर पाएगा।
जब-जब जड़ता दिखला मानव
मनमानी अति करने लग जाएगा।
प्रतिक्षण प्रकृति के रौद्र रूप का
कटुतर प्रतिफल भोग पछताएगा।
कल-कारखाने रचे उजाड़ जंगल,
वन्य प्राणियों को आश्रयहीन किया।
कंक्रीट के कानन खड़े कर डाले,
परिवर्तित असंतुलित पंचभूतों को किया।
प्राकृतिक प्रवाह रोककर के जल का ,
जलीय जीवन पर दुष्प्रभाव दिखलाएगा।
जब-जब जड़ता दिखला मानव
मनमानी अति करने लग जाएगा।
प्रतिक्षण प्रकृति के रौद्र रूप का
कटुतर प्रतिफल भोग पछताएगा।
जब तक प्रकृति संग परहित में मानव
एक सीमा में ही गतिविधि करता है।
सामंजस्यपूर्ण ढंग से निज पोषण हित,
उपभोग प्रकृति का विवेक से करता है।
लालच में आकर अति शोषण जो किया,
निज करनी का दण्ड प्रकृति से पाएगा।
जब-जब जड़ता दिखला मानव
मनमानी अति करने लग जाएगा।
प्रतिक्षण प्रकृति के रौद्र रूप का
कटुतर प्रतिफल भोग पछताएगा।
मानव का अर्जित सकल ज्ञान तो
एक अति क्षुद्र सी बूंद सागर की है।
क्षुद्रता ज्ञान की स्वयं सिद्ध करती
एक लघुतम सी हुंकार प्रकृति की है।
झंझा-भूकंप- भूस्खलन -चक्रवात या
सिद्ध अति सूक्ष्म कोरोना कर जाएगा।
जब-जब जड़ता दिखला मानव
मनमानी अति करने लग जाएगा।
प्रतिक्षण प्रकृति के रौद्र रूप का
कटुतर प्रतिफल भोग पछताएगा।
समय रहते ही हमारा चेतना जरूरी,
समस्या का समाधान मिल ही जाएगा।
भटकन दूर ही हो जाएगी निश्चित जब,
उलझन मिट सत्पथ हमको मिल जाएगा।
जब निजी लाभ स्वार्थ त्याग के नर मन ,
प्रकृति के संरक्षण में जब लग जाएगा।
जब जड़ता छोड़ के हर एक मानव
कुदरत के संग एकात्म रूप हो जाएगा।
प्रकृति का संतति हेतु हितकारी रूप ,
सकल जगत में सुख-शांति-समृद्धि लाएगा।