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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

जन-जन जगत का है परिजन हमारा

जन-जन जगत का है परिजन हमारा

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 जो हैं बेसहारे हम दें उनको सहारा,
सहयोग सेवा से चलता जग सारा।
 सार्थक करें हम यह जीवन हमारा,
जन-जन जगत का है परिजन हमारा।

 विशिष्ट प्रयोजन से हम जग में हैं आए,
 हर कण समाज और प्रकृति से हैं पाए।
 न कुछ है ले जाना न लेकर के ही आए,
 करें वह जो आगमन हो सार्थक हमारा,
जन-जन जगत का है परिजन हमारा।

कल हम करेंगे ऐसी बुरी आदत न पालें,
यथाशीघ्र हम शुभ कार्य सारे कर डालें।
 मौत के सिवा सब अनिश्चित इस जग में,
न जाने कब आ जाए बुलावा हमारा,
जन-जन जगत का परिजन हमारा।

नश्वर जगत में भौतिक वस्तु नाशवान है,
शब्द-कर्म अमर रहेंगे जब तक जहान है।
 रत रहें परहित में स्वार्थ भाव त्याग कर,
 आजीवन ही दृढ़ संकल्प रहे बस हमारा,
जन-जन जगत का परिजन हमारा।

जो हैं बेसहारे हम दें उनको सहारा,
सहयोग सेवा से चलता जग सारा।
 सार्थक करें हम यह जीवन हमारा,
 जन-जन जगत का है परिजन हमारा।

@ गायत्री डी पी सिंह कुशवाहा @


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