जन-जन जगत का है परिजन हमारा
जन-जन जगत का है परिजन हमारा
जो हैं बेसहारे हम दें उनको सहारा,
सहयोग सेवा से चलता जग सारा।
सार्थक करें हम यह जीवन हमारा,
जन-जन जगत का है परिजन हमारा।
विशिष्ट प्रयोजन से हम जग में हैं आए,
हर कण समाज और प्रकृति से हैं पाए।
न कुछ है ले जाना न लेकर के ही आए,
करें वह जो आगमन हो सार्थक हमारा,
जन-जन जगत का है परिजन हमारा।
कल हम करेंगे ऐसी बुरी आदत न पालें,
यथाशीघ्र हम शुभ कार्य सारे कर डालें।
मौत के सिवा सब अनिश्चित इस जग में,
न जाने कब आ जाए बुलावा हमारा,
जन-जन जगत का परिजन हमारा।
नश्वर जगत में भौतिक वस्तु नाशवान है,
शब्द-कर्म अमर रहेंगे जब तक जहान है।
रत रहें परहित में स्वार्थ भाव त्याग कर,
आजीवन ही दृढ़ संकल्प रहे बस हमारा,
जन-जन जगत का परिजन हमारा।
जो हैं बेसहारे हम दें उनको सहारा,
सहयोग सेवा से चलता जग सारा।
सार्थक करें हम यह जीवन हमारा,
जन-जन जगत का है परिजन हमारा।
@ गायत्री डी पी सिंह कुशवाहा @
