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Vaishnavi Mohan Puranik

Abstract

4.5  

Vaishnavi Mohan Puranik

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जिंदगी

जिंदगी

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जिंदगी ऐसी सहेली है

जो हररोज नई पहेली है ।

सुबह का हाथ थामे,

शाम के रंगो में ढली है ।

फूलों की चाहत लिए,

कांटो के बीच पली है ।

पहचान बनाने अपनी,

जलती अंगार से खेली है ।

मंजिल को पाने के लिए,

पत्थरों की राह चली है ।

सुख दुःख की घड़ी में,

धैर्य बनके मिली है ।

कौन जाने ये कैसी,

अपनेआप में ही भली है ।

नफरतों की धरती पर,

खिली प्यार की कली है ।


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