क्यूं चाहूं मैंं
क्यूं चाहूं मैंं
ऐसे रिश्ते
जो पायल
जैसे घाव देते
हों तो ऐसे रिश्ते
माटी और कुम्हार
जो ढल जाये
ढाल दे
एक सुंदर आकार मैं
मैं या मिट्टी
एक गुण धर्म हमारा
यौवन ढल यहां
जैसे मेरी मुट्ठी मैं रेत
एक अपरिचित से
परिचित होने में
भावनाओं के मौन संवाद
लोग क्या से क्या
समझ गये
झूठ और फरेब जीत गया
मैं सच बोलने के
रिश्ते निभाने के
वचन निभाती रह गयी
ऐसे जैसे
तारों के बीच
चांद तन्हा रह गया
