दर्द और दिल !
दर्द और दिल !
इस क़दर पड़ गया, मैं दर्द में,
न इल्ज़ाम मुझपे, न गुनहगार वो।
फिर भी उमीद करता है दिल,
उनसे, उनकी बेगुनाही क्यों ?
तुझे कैसे दर्द ऐ आबाद करूँ, तू बता।
जब मेरा तुझपे,बस नहीं।
पूरी कर कैसे दूँ, हर जिद तेरी
ऐ दिल, चाह तेरी मेरे बस में नहीं।
एक पल चाँद भी मिल जाए, वो नहीं
तेरी जिद्द उनसे परे तू !
इसके क़ाबिल नहीं।
