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Abhishek Singh

Abstract

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Abhishek Singh

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दर्द और दिल !

दर्द और दिल !

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इस क़दर पड़ गया, मैं दर्द में,

न इल्ज़ाम मुझपे, न गुनहगार वो।


फिर भी उमीद करता है दिल,

उनसे, उनकी बेगुनाही क्यों ?


तुझे कैसे दर्द ऐ आबाद करूँ, तू बता।

जब मेरा तुझपे,बस नहीं।


पूरी कर कैसे दूँ, हर जिद तेरी

ऐ दिल, चाह तेरी मेरे बस में नहीं।


एक पल चाँद भी मिल जाए, वो नहीं

तेरी जिद्द उनसे परे तू ! 

इसके क़ाबिल नहीं।


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