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Abhishek Singh

Tragedy Crime Thriller

4.6  

Abhishek Singh

Tragedy Crime Thriller

एक और दामिनी

एक और दामिनी

1 min
340


ये सिलसिला ना जाने कब थमेगा ?

किसी के रूह,आबरू का अपमान कब थमेगा ?

हुई शर्मसार पहले ही,

ना जाने तुम्हारा दुष्प्रचार कब थमेगा ?


हाँ लूटा सम्मान उसने मेरा

भरे समाज में,अपमान मेरा कब थमेगा ?

है वो वैहसी,दरिंदे,असभ्य जानवर।

साधो चित,काम,वासना अपमान मेरा तब थमेगा।


नहीं थी मैं अबला..!

ना ही बनूँगी सबला..!

आम हूँ आम रहने दो..!

इन अपमान की बेड़ियों से दूर बहने दो।


ख़्याल अपना मुझपे मत थोपो।

कीचड़ में कमल खिलने से मत रोको।

तब अपनाऊँगी समाज को,

इसके सभी रीति रिवाज को।


लगाते मोल वो मेरे आबरू का,

लूटे ज़िस्म फटे कपड़ों के टुकडों का।

हाँ वोट चाहिए लेते जाओ,साथ;

सम्मान बेटियों का बेचते जाओ।


हाँ अपनी बेटी कहाँ..?

मोह तुम्हें सिर्फ़ सत्ता की।

क्षीण हुई क़ानून व्यवस्था,

फ़िक्र अब कहाँ तुम्हें जनता की।


बेटों को दो बेटियों की परवरिश,

बेटियों को होने दो आज़ाद।

विचार बदलो पुरुषों का,

बेटियों को बदलने दो समाज।


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