वो जो ख़फ़ा है
वो जो ख़फ़ा है
ग़म-ए-तरतीब-ए-नुक्तेनज़र बनी वो
तर्क-ए-तआल्लुक़ अब बचाए कौन
दर्प-ए-दरिया-ए-साहिल दोनों हैं
मुस्कुराके पहले बतियाए कौन
यक़ीन था हमें अर्श-ए-मोहब्बत पे
शऊर-ए-दश्त पहले बढ़ाए कौन
इस्मतें परवाह हमें भी है
जुम्बिस-ए-रात घटाए कौन
कासा-ए-चश्म-ए-नशा ऐसा है
चारासाज़-ए-इलाज बताए कौन।