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Damyanti Bhatt

Abstract

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Damyanti Bhatt

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Untitled

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पता नहीं औरतों को

कैसा चांद चाहिए?


करुणा से भरी आंखों ने

पूरा साल 

जो तेरे इंतजार मैं बिताया

न चैन मिला न करार


छुपाते हैं लोग प्रेम को बदनामी की तरह,

वो प्रेम ही क्या...?


जो पग में घुंघरू बाँध  

मगन ना हो सके मीरा की तरह


अभी तक देख रही तेरी राह

तुम्हारे सिवा इस राह

कोई गुजर ही नहीं सकता


बहुत लड़ती रही 

पर हार गई

अपना ही

तमाशा बना बैठी


लोग ढेरों क़समें खाते हैं 

और हँस के भूल जाते हैं

तुम भी भूल ही गये होगे शायद...,

इतनी मुद्दत तक कोई रूठा नहीं रहता

नहीं तो

तुम इतनी देर से नहीं आते


मरना तो है ही एक दिन,

फिर चाहे मौत मारे...या तेरा दीदार


करवा चौथ

आखिर है क्या?


पुरुष चांद बन नहीं सकता

आसमान के चांद जैसे तो

बिलकुल नहीं


कभी चांद धरती पर आजा

बन कर आईना

चांद पूजने की ख्वाहिश ही मिट जाये


मैं रेगिस्तान हूं

मेरी बातों में

तपते सूर्य का जिक्र होगा



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