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VIVEK ROUSHAN

Abstract

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VIVEK ROUSHAN

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जख्म हरा होता है

जख्म हरा होता है

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दुनियाँ में हर एक़ चेहरा नया होता है

पर उन लोगों में कहाँ कुछ नया होता है


देखकर  जिसे  हम उससे दूर भागते हैं

उस काफ़िर ने भी ज़िन्दगी जिया होता है


नहीं होता वैसा जैसा हम अक्सर सोचते हैं

वही होता है जो किस्मत में लिखा होता है


एक़ शख्स मुझसे कुछ रूठ गया है ऐसे

जैसे फूल काँटों से चाँद तारों से खफा होता है


वो  आन पड़ता है बिन बुलाए पास मेरे

जिसे देख कर मेरा जख्म हरा होता है।


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