सुनता कोई नहीं
सुनता कोई नहीं
बुरा कोई नहीं अच्छा कोई नहीं
बोलते सब हैं यहाँ सुनता कोई नहीं
किसी से सुना औ किसी को बोल दिया
हकीकत क्या है ये जानता कोई नहीं
झूठ फैला तो फैलता ही चला गया
सच जितना कभी सिमटा कोई नहीं
खो गया है कहाँ सच इस दुनिया में
उसे यहाँ-वहाँ अब ढूंढ़ता कोई नहीं
प्यासे दोनों हैं सहरा भी औ जंगल भी
पर दरिया की तरह प्यासा कोई नहीं