VIVEK ROUSHAN

Abstract

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VIVEK ROUSHAN

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रोज़ पुकारा करते हैं

रोज़ पुकारा करते हैं

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तेरे बाद भी तेरे साथ वक़्त गुज़ारा करते हैं

रोज़ सोचते हैं तुम्हें रोज़ पुकारा करते हैं


दिन तो जैसे-तैसे गुज़र ही जाता है जानाँ

रात होते ही तुझे खुद में उतारा करते हैं


रौशनी हमसे  दूर बहुत दूर भागा करती है

हम अँधेरों के साए में जिंदगी गुज़ारा करते हैं


हम वो लोग हैं जो टूटते नहीं आसानी से

गर कभी टूटते हैं तो दूसरों को सँवारा करते हैं


बहुत भटके हैं यार तेरी इश्क़ गलियों में हम

अब उन गलियों में जाने से हम किनारा करते हैं।



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