Untitled
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मैंने मीरा , राधा, रुक्मणी में
कृष्ण ढूंढे
सबने एक दूसरे में
एक दूसरे को ढूंढा
अर्धांगिनी ने कृष्ण प्रिया
कृष्ण प्रिया ने अर्धांगिनी होना चाहा
कभी उनको मिले ही नहीं
या उन्होंने स्वीकारा नहीं
किताबों मैं पढ़ा है मैंने
प्रेम की डोर इतनी मजबूत होती है
दिखती तो नहीं
उस जगदाधार को भी बांध सकती है
पी गयी थी विष को
अमृत समझ
इसीलिए पा गयी थी मीरा उनको
पग में घुंघरू बांधे
मिलन मैं प्रेम विलुप्त होता
न मिलूं मैं
तुमसे
बचाना चाहूं प्रेम का आभास तुममें
तेरे हृदय
मेरी प्रीत मेरा नेह न समा सके
इतना छोटा हृदय तो नहीं हो सकता
मेरी अंखियां
जल भरी
तेरा दरस चाहें साधिका सी
कृष्ण पूरे
किसे मिले
