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Damyanti Bhatt

Abstract

4.2  

Damyanti Bhatt

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Untitled

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प्रेम विवाह और संतुष्टि

क्या यही रह गया है रिश्ते में


कुछ रिश्तों का कोई चेहरा नहीं होता

इसलिए वो नहीं देखते

आंसू, मुस्कान

पवित्रता, त्याग दूरियां

 जिंदा रखते हैं रिश्तों को


देह पर हक है प्रेम का

प्रेम को चाह नहीं देह की


कोई जीने को खाता कमाता

कोई खाने को जीता


जितना पसीना

कमाने को बहाते हैं

उतना ही खाते हुए भी बहाना चाहिए

नहीं तो

सुन्दरता उस शख्स को छोड़ देती


एक दौर अभी ऐसा भी आयेगा

जब गर्भ धारण करना

केवल स्त्रियों का

निर्णय होगा


उसकी मर्जी के बगैर

उस पर कोई नियम नहीं लगेगा


अगर औरतों को अपना हक चाहिए

तो उनको समझ जाना होगा

कि चूड़ियां, बिंदी

सिंगार

गले का मंगलसूत्र

नहीं दे सकता उनको सम्मान

प्रेम, अधिकार


बस ढहा देने हैं

वो रस्म रिवाज

केवल

स्त्री घर पर 

बंधक सी रहे

केवल देह में

अवशेष रहे



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