STORYMIRROR

Surendra kumar singh

Abstract

4  

Surendra kumar singh

Abstract

प्रवंचना

प्रवंचना

1 min
535


धारा के विरुद्ध

चलते चलते

जब वो पहुंचा

धारा के उद्गम बिंदु पर

तो कहने लगा

कितना सहज है 

धारा की तरह बहना

वो भी अपनी निर्धारित

मन्जिल की ओर।

कितना आनन्ददायक होता है

धारा के विपरीत चलना।

यकीनन ये भी एक तरह से

बहना ही होता है।

बिडम्बना ही है कि

बहना था इधर

बहने लगे उधर

हासिल करनी थी

कामयाबी

सो कामयाबी मिली

अपने स्व की कीमत पर

जो धारा के विपरीत

चलने से मिलती है।

बहना ठीक था

लेकिन विश्वास बहाना

आपस का प्रेम बहाना

अपनी सभ्यता बहाना

बहना नहीं डूबना है।

धारा के विपरीत बहने वाले ने कहा

हमने देखा है

डूबे डूबे ही

अंकुरित होना

बढ़ना

और छाया देना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract