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Anil Pandit

Abstract

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Anil Pandit

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शहर की बातें

शहर की बातें

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ये कोहरे से हटता हुआ धुआं

शहर का नजारा कितना गहरा

 

आखों मे सुबह की सादगी

ये शहर कि क्या कहूँ संजीदगी

 

चेहरे से हटता हुआ चेहरा

हजार लम्हो का दौड़ता कारवां

 

मेरी लिखी नज्में

हवाओ में बिखेरी ऐसे

बसंत आया बहार लेकर

मेरे शहर की दहलीज पे

 

कागज कलम और रेशम यादें

शहर की बातें खूबसूरत ऐसे

 

शहर का रास्ता रास्ता

मुझसे वाकिफ

मेरी शायरी कि दुनिया में

उसकी ख्वाहिश ही ख्वाहिश

 

अंदाज कुछ खास है शहर का

मुझमे एक समंदर समेट सा

 

शहर का चाँद दिखाता है

आसमान पर

उतारता हुआ उसे

अपने दिल के अक्स पर

 

रात चाँद और शहर

मैं अपनी धुन का शायर

 

मैं लफ्ज लफ्ज

शहर किताब किताब

 

वही गुलमोहर का पेड़

जमीन पर ओढे फूलों की लकीरें

उसी पेड़ के साये मे

जिंदगी रंग भरे

 

दिन ढलता है तो

लिखाता हुआ कुछ ग़ज़ल

शहर मे ही फिर मिलता है

सुकून हरपल

 

क्या बोलता है शहर

क्या सुनता है शहर

हर किसी से मिलता है

मेरा शहर

सुन ले कभी कभी तो

बहुत कुछ कहता है मेरा शहर।


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