STORYMIRROR

Anil Pandit

Abstract

4  

Anil Pandit

Abstract

शहर की बातें

शहर की बातें

1 min
641


ये कोहरे से हटता हुआ धुआं

शहर का नजारा कितना गहरा

 

आखों मे सुबह की सादगी

ये शहर कि क्या कहूँ संजीदगी

 

चेहरे से हटता हुआ चेहरा

हजार लम्हो का दौड़ता कारवां

 

मेरी लिखी नज्में

हवाओ में बिखेरी ऐसे

बसंत आया बहार लेकर

मेरे शहर की दहलीज पे

 

कागज कलम और रेशम यादें

शहर की बातें खूबसूरत ऐसे

 

शहर का रास्ता रास्ता

मुझसे वाकिफ

मेरी शायरी कि दुनिया में

उसकी ख्वाहिश ही ख्वाहिश

 

अंदाज कुछ खास है शहर का

मुझमे एक समंदर समेट सा

 

शहर का चाँद दिखाता है

आसमान पर

उतारता हुआ उसे

अपने दिल के अक्स पर

 

रात चाँद और शहर

मैं अपनी धुन का शायर

 

मैं लफ्ज लफ्ज

शहर किताब किताब

 

वही गुलमोहर का पेड़

जमीन पर ओढे फूलों की लकीरें

उसी पेड़ के साये मे

जिंदगी रंग भरे

 

दिन ढलता है तो

लिखाता हुआ कुछ ग़ज़ल

शहर मे ही फिर मिलता है

सुकून हरपल

 

क्या बोलता है शहर

क्या सुनता है शहर

हर किसी से मिलता है

मेरा शहर

सुन ले कभी कभी तो

बहुत कुछ कहता है मेरा शहर।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Anil Pandit

...

...

1 min read

...

...

1 min read

...

...

1 min read

...

...

1 min read

...

...

1 min read

...

...

1 min read

...

...

1 min read

...

...

1 min read

...

...

1 min read

Similar hindi poem from Abstract