लफ्ज़ ग्रीष्म के
लफ्ज़ ग्रीष्म के
जब झर रहे होंगे पत्ते
लफ़्ज़ों को लिखेंगे कागज पे
लिख कर कुछ बातें
यादों को दिल में समेट लेंगे
दोपहर की धूप में
पंछी जो बैठा छाव में
जाना नहीं है किसीने
गुनगुनाये लफ़्ज़ ग्रीष्म के
लिखी जो कविता
तुम्हारी चाहत में
लफ़्ज़ बदल गए प्रेम ऋतु में
अब इस प्रेम ऋतु में
कुछ तुम भी लिख देना
इंतजार के लम्हे को
ग्रीष्म के रंग में रंग देना

