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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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फिलहाल तो

फिलहाल तो

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फिलहाल तो

आनन्द सफर में है

साथ है आशा का

विश्वास का

पुरुषार्थ का


हालात है अवांछनीय तत्वों

के अतिक्रमण से

 सम्प्रभुता को छिन्न भिन्न होने का

सम्प्रभुता मनुष्य की

और देश की भी।


कितना अच्छा लग रहा है

आनन्द की रौशनी में

बदलती हुयी दुनिया

और अपने घर लौटता हुआ आदमी।


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