हमारा कश्मीर
हमारा कश्मीर
कुछ सोचते होंगे, ये कवि कैसी बातें करता है,
क्यों पाक के परमाणु बॉम्ब से तनिक नहीं डरता है ?
हाँ, नहीं डरता हूँ क्योंकि मृत्यु को अंतिम सच जानता हूँ,
अपनी विरासत के भूमि को प्राणों से अधिक मानता हूँ,
धर्म-युद्ध नहीं लड़ने को नपुंसकता कहा जाता है,
और मुझसे ये कलंक किंचित भी नहीं सहा जाता है,
मैं आतुर हूँ खोए हुए स्वाभिमान के लिए,
मैं आतुर हूँ अपने पूर्वजों के पहचान के लिए,
मान लिया हमारे दो शहर पे परमाणु ही फुट जाएंगे,
इसके उत्तर में हम पूरा पाकिस्तान ही लील जाएंगे,
आधुनिक जापान ने भी बहुत कुछ खोया था,
पर वह कब और कहाँ भाग्य-भरोसे रोया था,
अपने शोणित से अपना अखण्ड भारत बनाना है,
चढ़ छाती पे मल्लेछों के, हिन्द पताका लहराना है,
जबतक अपने स्वराज के लक्ष्य को पूर्ण नहीं करेंगे,
हम भले ही मरेंगे पर अवश्य युद्ध लड़ेंगे।
