" भारत-भूमि "
" भारत-भूमि "
है कहाँ अब देश जो सभ्यता अपना बचा पाया,
ये तो भारत है जो इतने हमलों को सह पाया,
अब जीवित इतिहास वाले देश ही कहाँ बचे हैं,
सब तख्त के गुलामी में ही कलम झुके हैं,
तुम अपने ही अस्तित्व को नहीं पहचानते हो,
कभी हर्षित अपना भारत था, क्या जानते हो?
अब तो इतिहास- भुगोल दोनों ही बदल गया है,
अपनी माटी को जो मल्लेछों का नजर लग गया है,
कोई तो नजरे उतारे, अपने देश की छवि उभारे,
कोई तो तरुणाई दिखाए जो भाग्योदय हो हमारे,
सब चाहते अमृत यहाँ पर किसी को गरल पीना होगा,
अमर बालिदन कर तलवारों के नोख पे जीना होगा,
कोइ तो पुरूषार्थ दिखाए, त्याग की वेदी जलाए,
पाषाण ह्रदयों में सभी के विद्रोह की आग लगाए,
हमें बिना रूके हर बाधाओं को लांघ जाना है,
आर्यावर्त का धवज अब चन्द्र्मा पे भी लहराना है।
