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Mukesh Bissa

Abstract

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Mukesh Bissa

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सुबह

सुबह

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उजियारे से मिल रहा संदेश सीमा पार करने को

क्योंकि यह समां उठ बैठ के ख़ुद जागने का


निशा का अंधियारा ओझल हो चुका

वक्त है पंछियों के चहचहाने का।


मंद हवा में प्रसून लहलहाते है

ये वक्त है भ्रमर के गुंजन का।


घोंसले में छिपी चिड़िया ने गर्दन निकली है

फूल ने हंसकर भरोसा दिया तंद्रा त्यागने का।


पेड़ पे गिलहरी उछलकूद करने है लगी

आज मौसम कर रहा मांग गुनगुनाने का।


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