Mukesh Bissa
Abstract
दूर हो या हो पास
कोई बात नहीं है
तुम साथ हो
यह एहसास जरूरी है।
शेष
एहसास
मन करता है
शेष है बहुत क...
हिंदी की व्यथ...
आओ देश बनाएं
वो जगह ढूंढना...
अभी शेष है
कुछ आंखों से
पुराने खत
क्योंकि मैं मुलाकात इन्सान से करना पसंद करती हूँ ओहदे से नहीं। क्योंकि मैं मुलाकात इन्सान से करना पसंद करती हूँ ओहदे से नहीं।
आंसू बहा-बहा के अपने दिलबर की याद में हम रोए। आंसू बहा-बहा के अपने दिलबर की याद में हम रोए।
उदासी की बहती हुयी हवा में आंखें झेलती हैं उदासी का दंश। उदासी की बहती हुयी हवा में आंखें झेलती हैं उदासी का दंश।
मंजिल को पाने के लिए सफर में कितनी रुकावटें मिली हमें, मंजिल को पाने के लिए सफर में कितनी रुकावटें मिली हमें,
लग रहा है आदमी को घेरे हुये विचार बरस रहे हैं पानी की तरह लग रहा है आदमी को घेरे हुये विचार बरस रहे हैं पानी की तरह
जीवंत हैं हम इसलिये हर गुजरते हुये पल में जीवंतता को देख लेते हैं। जीवंत हैं हम इसलिये हर गुजरते हुये पल में जीवंतता को देख लेते हैं।
जिसमें उसकी जो मर्जी हो वह खुशी की एक रोशनी है। जिसमें उसकी जो मर्जी हो वह खुशी की एक रोशनी है।
आइए कहानी की कहानी जानते हैं कहानी की व्यथा भी सुनते हैं। आइए कहानी की कहानी जानते हैं कहानी की व्यथा भी सुनते हैं।
आत्मविश्वास से परिपूर्ण स्त्री अपने रास्ते बना सकती है खुद ही, आत्मविश्वास से परिपूर्ण स्त्री अपने रास्ते बना सकती है खुद ही,
बरसात की नन्ही नन्ही बूंदें मुझे ना छुए, इसलिए वो आंचल से छुपा लेती है, बरसात की नन्ही नन्ही बूंदें मुझे ना छुए, इसलिए वो आंचल से छुपा लेती है,
मोर पंख माथे पर तुम्हारे और मेहनत का कंगन मैं अपने हाथों पर सजाऊँ। मोर पंख माथे पर तुम्हारे और मेहनत का कंगन मैं अपने हाथों पर सजाऊँ।
तरुवर को कैसे छाया मिलेगी वातावरण में। तरुवर को कैसे छाया मिलेगी वातावरण में।
जीवन में उजाला लाए। घर-घर में दीप जलाए। जीवन में उजाला लाए। घर-घर में दीप जलाए।
सब कुछ अस्त व्यस्त और व्यवस्थित रूप से जर्जर हो चला है सब कुछ अस्त व्यस्त और व्यवस्थित रूप से जर्जर हो चला है
शक्तिशाली सेना अति ही तत्पर भयभीत शत्रु देश, शक्तिशाली सेना अति ही तत्पर भयभीत शत्रु देश,
शुद्ध मति के प्रेम से ही जगत का कल्याण होगा, शुद्ध मति के प्रेम से ही जगत का कल्याण होगा,
नीर को नयन भी ठौर नहीं देते नीर सी नयनों से गिर गयी नीर को नयन भी ठौर नहीं देते नीर सी नयनों से गिर गयी
माँ के हाथों ने परोसा हुआ सरसों का साग और मक्के की रोटी माँ के हाथों ने परोसा हुआ सरसों का साग और मक्के की रोटी
हजारों इमारतों का निर्माता, दर-दर भटकने को मजबूर हूँ, हजारों इमारतों का निर्माता, दर-दर भटकने को मजबूर हूँ,
दुनियाँ में हर एक़ चेहरा नया होता है पर उन लोगों में कहाँ कुछ नया होता है। दुनियाँ में हर एक़ चेहरा नया होता है पर उन लोगों में कहाँ कुछ नया होता है।