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Sunil Kumar

Abstract

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Sunil Kumar

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यादों की गलियों में

यादों की गलियों में

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यादों की गलियों में जब दिल ‌जाता है

बहुत कुछ याद आ जाता है।

अम्मा की लोरी दोस्तों की हंसी ठिठोली

सब कुछ याद आ जाता है

यादों की गलियों में जब दिल जाता है।

गुड्डे-गुड़ियों संग खेल पुराने

भूले-बिसरे कुछ तराने 

मन ही मन गुनगुनाता है 

यादों की गलियों में जब दिल जाता है।

कभी रूठना और मनाना

अम्मा-बाबू से हर जिद मनवाना  

दिल भूल नहीं पाता है

यादों की गलियों में जब दिल जाता है।

खुद खाने से पहले मुझे खिलाना

रूठूं तो इक पल में मनाना

मां का प्यार भूल नहीं पाता है

यादों की गलियों में जब दिल जाता है

सुख-दु:ख में काम आना

मिल जुलकर त्योहार मनाना

मन को बहुत भाता है

यादों की गलियों में जब दिल जाता है।

पलकों पर उसे बिठाना 

भूले-बिसरे गीत सुनाना 

आज भी याद आता है

यादों की गलियों में जब दिल जाता है।

बंद करते ही पलकें

सुहाना मंजर नजर आता है

यादों की गलियों में जब दिल जाता है।

अपनों संग बीता हर इक लम्हा 

कभी खुशी कभी गम दे जाता है

यादों की गलियों में जब दिल जाता है।



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