STORYMIRROR

Hardik Mahajan Hardik

Abstract

4  

Hardik Mahajan Hardik

Abstract

सिसकियाँ

सिसकियाँ

1 min
602

ऐसे ही न मिल जाना तुम 

तुममें मैं घुलमिल जाऊंगा


बहारों में ना समां जाना तुम

 तुममें मैं समां जाऊंगा


सिसकियां फिर तुम्हारी होगी

फिर से यादें मेरी होगी


श्रोताओं से मुक्त चरन बद्ध होंगे

 तुम्हारी वो रात होगी


ऐसे ही न मिल जाना तुम

तुममें मैं घुलमिल जाऊँगा 


तेरी मेरी दुनिया मे फिर खयाल 

 बुनना मुश्किल शायद 


ऐसे ही न मिल जाना तुम

तुममें मैं घुलमिल जाऊंगा


खुद पर विश्वास करो तुम

मंजिल पे मुकाम पा लोगे


चल फिर से आसमाँ पर उड़ें 

  अर्मानों को हम सजायें


ऐसे ही न मिल जाना तुम 

तुममें मैं घुलमिल जाऊंगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract