चंद-चंद करके
चंद-चंद करके
चंद-चंद करके उलझे सवाल कितने हैं,
रेशा-रेशा करके परेशान हम कितने हैं।
ज़िंदगी के कुछ पल जीतने निकलते,
बेफिक्र सराबोर में करे तंग कितने हैं।
फिक्र करती नहीं घड़ियां जहां चलती,
बेखबर ख़्वाब तुम्हें दिखाती कितने हैं।
टिक-टिक करती घड़ियां जहां ख़्वाब,
दिखाती तुम्हें वह समय पर कितने हैं।
सच होता नही कभी ख़्वाब ये तुम्हारा,
पल पल बताते अधूरे ये कितने हैं।