उस मोड़ पर
उस मोड़ पर
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उस मोड़ पर आजकल, वो दोस्त नहीं मिलते,
जिस राह पर हम साथ, रहते और बैठते थे।
भूले नहीं हम कुछ भी, कुर्सी किनारा वही हैं,
खामोश समंदर , बस वो दोस्त साथ नहीं है।
हम ख्वाहिशों की अधूरी, कहानियाँ सुनाते हैं,
जहाँ दोस्त अपने पुराने जब भी साथ होते थे।
तब ख़ुशी और ग़म दोनों, ही अच्छे लगते थे,
"हार्दिक" सारे दोस्त मिलकर जिया करते थे ।