मैं स्त्री हूँ ....
मैं स्त्री हूँ ....
यह कविता स्त्री को केंद्र में रखकर लिखा गया है, इसलिए आपलोग भी क्षण भर के लिए स्त्री के किरदार में रहकर यह रचना पढ़े, और इसी किरदार में रहते हुए समीक्षा लिखें।
यह मेरा विचार है, इसलिए किसी को कुछ कष्ट हो तो हमें माफ करें।
मैं स्त्री हूँ, स्त्री को समझना आसान नहीं है।
स्त्री कि कोई परिभाषा नहीं है,
क्योंकि स्त्री खुद एक परिभाषा है।
साबित कर दिखा देती हूं,
चलो एक सिद्धांत बतला देती हूं।
न्युटन का नियम लगाओ
या गणित का सूत्र,
स्त्री रूपी प्रश्न का हल न कर पाओगे।
इतिहास का साक्ष्य लाओ या राजनीति का सिद्धांत,
स्त्री रुपी व्यक्ति को समझ न पाओगे।
भविष्यवाणी कर लो या आकाशवाणी कर लो, स्त्री के मन को समझ न पाओगे।
रिसर्च कर लो या कोशिश कर लो,
स्त्री का एक ही रुप साबित न कर पाओगे।
मैं स्त्री हूँ , स्त्री को समझना आसान नहीं है।
स्त्री कि कोई परिभाषा नहीं है, क्योंकि स्त्री खुद एक परिभाषा है।
स्त्री को समझ सको, इतनी समझ नहीं है तुझमें।
ऐ दुनिया........
स्त्री को पहचान सको, इतना दिमाग नहीं है तुझमें।
ऐ दुनिया........
स्त्री कि शक्ति जान सको, इतनी औकात नहीं है तुझमें।
ऐ दुनिया .........
स्त्री कि परिभाषा पढ़ सको, इतना समझ नहीं है तुझमें।
ऐ दुनिया..........
स्त्री खुद एक परिभाषा है ,कैसे तुम्हें उसकी परिभाषा बतलाऊं।
ऐ दुनिया...........
स्त्री खुद में संपूर्ण है, चांद तारों से तुलना न करो।
ऐ दुनिया.......
मैं स्त्री हूँ, स्त्री को समझना आसान नहीं है।
स्त्री कि कोई परिभाषा नहीं है, क्योंकि स्त्री खुद एक परिभाषा है।