मरी हुई जिंदा लड़कियाँ
मरी हुई जिंदा लड़कियाँ
जब अचानक से लड़कियों की शिक्षा लेकर
मची थी क्रांति
और लोग बंद करने लगे थे
धीरे - धीरे कच्ची मिट्टी को ब्याहना।
लगा होगा कि अब सब कुछ बदल जाएगा
मरी हुई स्त्रियों को अब जिंदा समझा जाएगा।
कि अब दसवीं कक्षा के ऊपर बाहर बी ए, एम ए तक लड़कियाँ पढायी जा रही थी
कि सोच रहे थे सब अब घर से
गढ़ी मूर्तियाँ ब्याही जायेंगी कच्ची मिट्टीयाँ नहीं।
तो कुछ यूँ मूर्तियों को गढ़ा जाने लगा
पढ़ाई - लिखाई एक तरफ
घर के कामकाज एक तरफ
कि दो अक्षर पढ़ - लिख के भी
रोटियाँ गोल बेलनी ही पड़ेंगी ।
सर्वगुण सम्पन्न होना अनिवार्य शर्त मूर्तियों में
वो भी चिकना रँग - रूप लिए
कि सुनो पढ़ना पर,
अपने निर्णय लेने की बुद्धि नहीं आएगी तुम्हें ।
कि सुनो पढ़ना पर,
अपना स्वाभिमान मत जगा लेना
कि मूर्तियों का सर्वप्रथम गुण मौन है ।
कि सुनो पढ़ने का शौक है तो पढ़ना,
पर अगर कम पढ़ा लिखा कमाऊ लड़का खोज दें तो
इंकार मत कर देना ।
कि सुनो नौकरी करना है तो करो पर
उसका अभिमान मत पाल लेना
वो लड़कों का गुण है,
लड़कियों को न सुहायेगा
कि ये सुनो वो सुनो की असल बात ये थी कि
वो लड़कियों को न पढ़ा रहे थे
वो बस अच्छे दामाद की चाह में समझौता करने लगे थे ।
कि लड़कों को भी तो अब
पढ़ी लिखी अप टू डेट लड़कियाँ चाहिए
और लड़कों के तो भाग्य का सितारा
हमेशा ही चमकदार रहा
थोड़ा और चमक गया
घर भी चकाचक, अकाउंट भी चकाचक,
और लड़की भी चकाचक
बस कुछ चकाचक न बर्दाश्त हुआ
इन्हें तो वो ये कि स्वाभिमान में
मौन मूर्तियों की खुलती हुई जुबान,
अब कोई इन्हें कैसे समझाये कि,
इनका ब्याह कच्ची मिट्टी से नहीं हुआ
जिस पर ये जो चाहें छाप दें
और एक बार गढ़ चूकी मूर्तियाँ
दूबारा नहीं तराशी जा सकती ।
"पर बात ये है कि बलिदान बिना तो कुछ मिला नहीं यहाँ
तो जिस पीढ़ी में मरी हुई स्त्रियों को जिंदा करने की कोशिश की गयी
वो अपनी आगे की पीढ़ी की खुशियों के लिए न जी सकी न मर सकी ।
वो बस घुटती रही अपने स्वाभिमान से समझौता कर
उस चिड़िया की तरह जो कैद हो
पँख होते हुए भी पँखहीन हो जाती हैं ।"