गणतंत्र दिवस की परेड।
गणतंत्र दिवस की परेड।
आज सेवानिवृत्त हुए भी 4 साल हो चुके हैं। बचपन से गणतंत्र दिवस मनाया भी है और मनते हुए भी देखा है। जीवन में जैसे और परिवर्तनों को देखा है वैसे ही गणतंत्र दिवस में भी बहुत परिवर्तन आए हैं। क्योंकि हमारे पिता सरकारी नौकरी में थे इसलिए हम दिल्ली में सरकारी मकानों में ही रहे हैं वहां हमारे साथ में रहने वाले सब लोगों के लिए गणतंत्र दिवस का विशेष महत्व होता था। गणतंत्र दिवस से पहले हम अपनी कॉलोनी को सजाते थे। गणतंत्र दिवस देखने के लिए कॉलोनी के हम सब बच्चे इकट्ठे होकर जाया करते थे। सबसे आगे बैठने के लिए सीट लेना हमारा एकमात्र उद्देश्य होता था राजपथ के चारों ओर जहां पब्लिक के बैठने के लिए जगह होती थी हम सब वहां पर अपनी अपनी चादर भी बिछाकर बैठ जाते थे ।हालांकि वहां पर टाट पट्टी तो बिछी हुई होती ही थी। परेड शुरू होने से पहले हमारी उत्सुकता हर साल नई ही जागृत होती थी और हम पूरा दिन गणतंत्र दिवस की झांकियों का ही जिक्र करते रहते थे। हम सब बच्चे झांकियां देखते हुए मूंगफली खाते थे और भी बहुत कुछ जो हमारे माता-पिता हमारे खाने के लिए रख देते थे हम साथ लेकर ही जाते थे और पारस्परिक सौहार्दपूर्ण व्यवहार रखते हुए एक दूसरे से मिल बांट कर ही खाते थे। गणतंत्र दिवस पर एक तो ठंड भी बहुत ज्यादा होती थी और उसके अतिरिक्त कई बार बारिश भी आ जाती थी। हम जिस सरकारी स्कूल में पढ़ते थे हमारे स्कूल की लड़कियां भी परेड में भाग लेती थी। एक बार तो 26 जनवरी की परेड में भाग लेने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ था। हमारे सामने से जब हमारे स्कूल की लड़कियां परेड करती हुई निकलती थी तो हम को जो खुशी मिलती थी मुझे नहीं लगता कि आज के बच्चे वह खुशी वह मस्ती वह बिंदास जीना कभी सोच भी पाएंगे। कई बार तो हमारे पास में छतरियां भी नहीं होती थी। फिर भी हल्की-हल्की बूंदाबांदी में परेड देखने का मजा ही कुछ और होता था उस समय तक टेलीविजन का चलन नहीं हुआ था।
राष्ट्रपति की बग्घी हमारे लिए बहुत उत्सुकता का कारण होती थी और हम दूर से घोड़ों को देख कर के ही पता लगा लेते थे कि अब राष्ट्रपति जी बैठ चुके होंगे। गणतंत्र दिवस की परेड खत्म होने के बाद हम आसमान में हवाई जहाजों के करतब देख कर खुश होते थे और उसके बाद इंडिया गेट में ही बहुत से गैस वाले गुब्बारे खरीद कर उड़ाया करते थे। हमारे लिए 26 जनवरी का पर्व बहुत ज्यादा महत्व रखता था । हम सब बच्चे नया साल शुरू होते ही गणतंत्र दिवस की बहुत इंतजार करते थे। मम्मी की चुन्नियों को ही हम तिरंगे के रंगों के जैसे अपने घर से बाहर की ओर लटका कर ऐसे रखते थे मानो तिरंगा लहरा रहा हो। हमें शहीदों की गाथा को पढ़ने या याद रखने की जरूरत नहीं होती थी हमारी कॉलोनी में ही हमारे दादा जी या कॉलोनी में किसी के भी दादी दादा ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग भी लिया होता था और वह अपने ही किस्से हमको सुनाया करते थे। उनमें से बहुत से लोगों ने महात्मा गांधी जी का सानिध्य प्राप्त किया हुआ होता था।
भारतवर्ष के और पर्वों के जैसे ही हमारे लिए राष्ट्रीय पर्वों का भी बहुत ज्यादा महत्व होता था 15 अगस्त को लाल किले जाना 14 नवंबर को बाल भवन जाना एक बार तो हम भी 14 नवंबर को जब अपने स्कूल के साथ गए थे तो वहां हमने पूर्व प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू को भी देखा था।
यह सब तब की बात है जब कि टेलीविजन प्रत्येक घर तक नहीं पहुंचा था। हमें आज भी याद है एक बार 26 जनवरी को ठंड तो थी ही और बारिश का भी मौसम था, मेरी तबीयत थोड़ी सी खराब थी तो उस बार हमारी मम्मी ने हमको 26 जनवरी की परेड देखने नहीं जाने दिया। मुझे बहुत दुख हो रहा था। हमारे घर के पास में ही एक जनरल स्टोर की दुकान और उनका घर दोनों ही था। किसी कारण से मैं जब सवेरे दुकान पर कुछ लेने के लिए गई तो दुकान वाले अंकल ने मुझे
26 जनवरी की शुभकामनाएं देते हुए पूछा कि क्या तुम आज परेड देखने नहीं गई। मैंने जब उन्हें दुखी होते हुए बताया कि मेरी मम्मी ने मुझे नहीं जाने दिया तो उन दुकान वाले अंकल ने मुझसे कहा तुम परेशान मत हो अभी मम्मी को बोल कर यहां आ जाओ मैंने टी .वी बाहर चौक में लगवा दिया है। तुम्हारे साथ के और भी जो बच्चे 26 जनवरी की परेड देखने नहीं जा पाए हैं वह सब मेरे पास इधर आ जाओ। खुशी खुशी अपने और दोस्त जो कि नहीं जा पाए थे उन दोनों को भी अपने साथ बुलाया और हम 26 जनवरी की परेड देखने उस साथ वाले स्टोर में चले गए। पाठकगण आज जहां हर चीज हर दुकानदार केवल लाभ के लिए ही कार्य करता है आप विश्वास कीजिए उन दुकान वाले अंकल ने अपनी बहुत बड़ी मूंगफली की बोरी खोली और वह बहुत सारी मूंगफली वह हम सबको देते जा रहे थे। उस दुकान वाले दादाजी भी बहुत खुशी खुशी जिसकी भी मूंगफली खत्म हो जाती थी उन्हें और मूंगफली देते हुए कहते थे आजाद देश में हो, आजाद होकर मूंगफली खाओ जितनी मर्जी खाओ। परेड खत्म हुई जन-गण-मन पर हम सब खड़े ही हो जाते थे। घर आने पर जब हमने अपने सारे दोस्तों को बताया कि टीवी में देखने पर लोगों ने तो हर स्कूल का डांस भी देखा था वहां से तो हम केवल स्कूल के बच्चों को अपने आगे से परेड करते हुए ही देख पाते थे। उनमें से अधिकतर तो आगे जाकर राष्ट्रपति जी के सामने ही अपना नृत्य प्रस्तुत करा करते थे।
समय बीता हम बड़े हो गए। दिल्ली से दूर हुए और फिर अपने बच्चों को कभी परेड दिखाने ना ले जा सके और वह भी शुरू में तो टेलीविजन में ही देखने के लिए उत्सुक रहते थे। फिर समय और बदला हमारे पिता ने कहा कि हमारी रिटायरमेंट से पहले तुम सब आओ मैंने रिपब्लिक डे परेड के वीआईपी पास ले रखे हैं तुम सब आकर देखो। पाठकगण हम वीआईपी कक्ष में बहुत सिक्योरिटी में बैठे हुए थे लेकिन वह बिंदास परेड देखना बहुत याद आ रहा था।
आज इस बात को भी काफी साल बीत गए अब जबकि मेरे नाती नातिन भी दसवीं कक्षा में है और मैं देखती हूं कि उनके पास 26 जनवरी की परेड देखने के लिए टीवी के बहुत से चैनल यूट्यूब, टैब सब कुछ है लेकिन फिर भी पर्व के लिए वह उत्साह नहीं था।
आज भी हम हर 26 जनवरी को सुबह से ही टेलीविजन खोलकर बैठ जाते हैं और फिर हम पाते हैं धीरे-धीरे बच्चे भी हमारे साथ आकर बैठ जाते हैं। हम उन्हें अपने दादी नानी नाना और पुराने समय की बहुत सी वीरों की गाथाएं सुनाते हैं। इस तरह से हमारा तो गणतंत्र दिवस का पर्व मन जाता है लेकिन मन में यूं ही एक विचार आता है कि एकल परिवार जिसमें कि बड़े भी नहीं रहते तो उनके बच्चों को गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस मनाने की भावना का बीज कौन बोएगा? उनकी व्यस्तताओं में सेंध लगाकर कौन उन्हें समझाएगा कि आजाद देश में जन्म लेना कितने बड़े सौभाग्य की बात है। तिरंगे को देखकर गर्वित होना वह कैसे सीखेंगे?