एक वह समय था
एक वह समय था
एक वह भी समय था जब हमारे पास संसाधन बहुत कम थे लेकिन तब हम बहुत संपन्न थे।
हमारे वार्डरोब में ढेरों कपड़े नहीं थे लेकिन हमारे पुराने कपड़े भी नए जैसे ही दिखते थे।
किसी के भी विवाह में मम्मी एक ही साड़ी हर बार पहनती थी
लेकिन वह हर बार पहले से भी ज्यादा सुंदर दिखती थी।
खिलौने भले ही काम थे लेकिन खेल बहुत थे।
शाम तक हम बच्चों की टोली मचाते ऊधम बहुत थे।
फ्रिज टीवी पंखे तब सबके पास कहां होते थे लेकिन
तारे गिनते हुए आंगन में चारपाई पर हम चैन से सोते थे।
गैस कुकर का तो तब नामो निशान भी ना था।
चूल्हे की रोटियां में परिवार के साथ खाने का मज़ा ही कुछ और था।
पढ़ाई तब इतनी महंगी तो न थी,
लड़कियों के लिए तो इतनी जरूरी भी ना थी
लेकिन मां और दादी की मैनेजमेंट एसा था कि घर में कोई चीज़ की भी लगती कमी नहीं थी।