दुनिया का मेला
दुनिया का मेला
दुनिया के मेले में हर शख्स अकेला है।
कहने को सब साथ हैं लेकिन सहने को अकेला है।
दुख दर्द हो या कोई भी गम हो
जब टूटता है मन तो सुनता वह अकेला है।
दुनिया के इस मेले में हर शख्स अकेला है।
भीड़ बहुत है यूं तो कहने को इस दुनिया में,
लेकिन अपने में ही सीमित हर शख्स अकेला है।
मतलब के है रिश्ते सारे, मतलब के हैं अपने सारे।
मतलब हुआ खत्म तो इस दुनिया में कोई भी तो ना तेरा है।
समझ के जितनी जल्दी इस दुनिया की रीत जो,
परमात्मा का जो हो जाए, परमात्मा में लगा ले प्रीत जो।
हर शख्स में दिखे परमात्मा का अक्स जिसे,
परमात्मा हो संग जिसके
हो ना सकता वो कभी अकेला है।
परमात्मा से लगा ले प्रीत,
बना ले उसको ही मीत,
जो ना चाहता रहना तू अकेला है।
