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Sanjay Saini

Abstract Tragedy Action

4.7  

Sanjay Saini

Abstract Tragedy Action

गांधार

गांधार

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गहन तिमिर तमस तब गहराया

जब आतंकी परचम लहराया

असुरक्षित हो गए नारी अरुणार

जब हर सत् जन है घबराया


बीस वर्ष की कोशिशें नाकाम

होने दो कितना भी काम नायाब

हर प्रयास को करता है व्यर्थ

जब पड़ोस में हो नापाक पाक


कहते खुद को तुम तालिबान

पर क्या इतने भी समझे हो

तालिब होता है अभिलाषी

जनता का शोषण क्यूँ करते हो


अब पत्तन पर चलते हैं बम ओ गोले

बेघर हो गए हैं सब बच्चे भोले

जब उम्र है अपने कूचे में खेलो

पर बिना पलायन कैसे जी लो?

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जहाँ नहीं सुरक्षित अब अमरीकन मरीन

बाकी सब का है क्या अस्तित्व

पुनः स्मरण करना होगा

इतिहास बदल कर बढ़ना होगा


केसर की इस धरती पे

रंग नूर क्या बदला है

गांधारी के गांधार में

क्या वो श्राप फिर उभरा है?


उस युग में कृष्ण ने उद्धार किया

इस युग में कौन बचाएगा

इस विकट संकट घडी में

जो संताप हर ले जायेगा


हमें ये चिंतन करना होगा

अपना परिपेक्ष्य बदलना होगा

कृष्ण को अगर आना भी होगा

अर्जुन को गांडीव उठाना होगा।


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