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Sanjay Saini

Abstract

4.8  

Sanjay Saini

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लॉक डाउन

लॉक डाउन

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बाहर कोलाहल

कुछ,

कम सा है I

वातावरण में 

कुछ,

भारीपन सा है I


पेड़ों पर 

ज्यादा हैं पक्षी 

और उनका मधुर गान

किन्तु,

मनुज 

कुछ

घर के भीतर सा है I


चाह थी

जिसे शान्ति की

उसे

वो मिली तो सही

किन्तु,

सुकून पहले से 

कहीं कम सा है I


वो शोरगुल 

जिसे मानव 

सह ना सका 

वो 

उसे आज कुछ

अधिक प्रिय सा है I


भागती दौड़ती 

ज़िन्दगी से थका

मनुष्य 

आज बैठने से

कुछ 

अधिक थका सा है I


हर काम में की

जल्दबाज़ी

पर आज उसे

कुछ 

सब्र सा है I


बिना पर्यटन पर्याय के

अपने ही शहर में

घूमने को

वह आज

कुछ

उतावला सा है I


है ये मानव की करतूत

या

ईश की रचना

मुझे

कुछ अभी

कौतूहल सा है I


अधिक निर्मल है

गंगा का जल

और

साफ़ है आसमान

किन्तु

इसमें भी मानव

कुछ

असहज सा है I


शांत है हर कोना

और

एकांत है सबके पास

किन्तु,

कोलाहल की कमी 

आज ये कुछ 

विषम सा है I



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