यात्रा...
यात्रा...
जीवन में विटामिन की,
बढ़ती रहती मात्रा,
जीवन में खुशियों की,
करती हैं व्याख्या
ऐसी उपयोगी यात्रा।।
और अब कुछ पंक्तियां और,
यार ! कर ना मसखरी,
मैं तो इक घुमक्कड़ी।
पांव में है चक्र मेरे,
कहता मैं खरी - खरी।।
मैं तो इक घुमक्कड़ी....
कभी यहाँ, कभी वहां,
घूमता मैं सारा जहां।
तुम छिपे हो प्रभु कहां,
खोजता यहां - वहां।।
मैं तो इक घुमक्कड़ी.....
धूप हो या शीत हो,
मन में कितनी टीस हो।
पर्यटन जो मीत हो,
लेगी सांस ज़िन्दगी।।
मैं तो इक घुमक्कड़ी.......
मंज़िलें बुला रहीं,
लोरियां सुना रहीं।
कन्दरा पहाड़ हो,
वे तुम्हें बुला रहीं।।
मैं तो इक घुमक्कड़ी,
मैं तो इक घुमक्कड़ी।।
