गीत, अधरों पर!
गीत, अधरों पर!
तुमने लिखे जो गीत
अधरों पर मेरे
उनमें अलग ही भाव थे
गहरे भरे !
मृदु, मंद, मुखरित शब्द
थे उनके पिये
विस्मृत हुए क्यों आज मुझको
बिन जीए!
तेरे कपालों पर गिरीं
केशों की लटें
अंगड़ाइयों के संग
मुझे अब हैं डसें !
उस गीत में विरही धुनों का
था बसेरा
गा भी न पाया था कि
दुख छाया घनेरा !
पत्थर बने जीवन में
तुम इक बार आकर
पारस बना दो तुम मुझे
फिर गीत गाकर !