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Prafulla Kumar Tripathi

Others

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Prafulla Kumar Tripathi

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देशहित मरते कितनी बार!

देशहित मरते कितनी बार!

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जीवन यह नदी की धार,

कि जिसमें सब बह जाया करते हैं ।

है मौत बहुत बलवान ,

कि जिससे हम सब भी घबराते हैं ।।


अक्सर धन-यश-बल की ख़ातिर,

हर सभी रात दिन मरते हैं ।

लेकिन कुछ ऐसे भी होते ,

इतिहास बनाया करते हैं ।।


यह उसी वीर "यश" की गाथा,

अनुपम और अमर कहानी है ।

जिसने निज प्राण की आहुति  दे ,

गाथा लिखने की ठानी है ।।


लुधियाना की धरती पर उसने,

जीवन धन अपना लुटा दिया ।

सैनिक दल - बल से लदी ट्रेन को ,

दुर्घटना से बचा लिया ।।


जब ट्रेन रवाना होनी थी,

यह लगा कि कुछ अनहोनी थी ।

आतंकवाद की साजिश थी,

दुर्घटना उसे रोकनी थी ।।


"यश " तत्पर होकर जुटा रहा,

आयुध भंडार को बचा रहा ।

तब तक इक तेज धमाके में,

था प्राण वो अपने लुटा रहा ।।


पूरी पल्टन अब थी हतप्रभ ,

नि:शब्द सभी अब कोना था ।

रक्षा का भार था कन्धे पर ,

लथपथ था पड़ा औ' जख्मी था ।।


जीवन और मृत्यु के बीच ठनी,

जीवन था बाजी हार रहा ।

"यश" फिर भी खुश मुस्कुरा रहा,

अपने दायित्व को निभा रहा ।।


वह गया मृत्यु से हार,

शहादत को देकर पैनी धार ।

कि मरने को तो सब मरते ,

देश हित मरते कितनी बार ?


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