देशहित मरते कितनी बार!
देशहित मरते कितनी बार!


जीवन यह नदी की धार,
कि जिसमें सब बह जाया करते हैं ।
है मौत बहुत बलवान ,
कि जिससे हम सब भी घबराते हैं ।।
अक्सर धन-यश-बल की ख़ातिर,
हर सभी रात दिन मरते हैं ।
लेकिन कुछ ऐसे भी होते ,
इतिहास बनाया करते हैं ।।
यह उसी वीर "यश" की गाथा,
अनुपम और अमर कहानी है ।
जिसने निज प्राण की आहुति दे ,
गाथा लिखने की ठानी है ।।
लुधियाना की धरती पर उसने,
जीवन धन अपना लुटा दिया ।
सैनिक दल - बल से लदी ट्रेन को ,
दुर्घटना से बचा लिया ।।
जब ट्रेन रवाना होनी थी,
यह लगा कि कुछ अनहोनी थी ।
आतंकवाद की साजिश थी,
दुर्घटना उसे रोकनी थी ।।
"यश " तत्पर होकर जुटा रहा,
आयुध भंडार को बचा रहा ।
तब तक इक तेज धमाके में,
था प्राण वो अपने लुटा रहा ।।
पूरी पल्टन अब थी हतप्रभ ,
नि:शब्द सभी अब कोना था ।
रक्षा का भार था कन्धे पर ,
लथपथ था पड़ा औ' जख्मी था ।।
जीवन और मृत्यु के बीच ठनी,
जीवन था बाजी हार रहा ।
"यश" फिर भी खुश मुस्कुरा रहा,
अपने दायित्व को निभा रहा ।।
वह गया मृत्यु से हार,
शहादत को देकर पैनी धार ।
कि मरने को तो सब मरते ,
देश हित मरते कितनी बार ?