अवध की सरज़मीं!
अवध की सरज़मीं!
हमपे कुदरत ने नूर बक्शा है ,
हम दुआओं से आगे बढ़ते हैं ।
लहरा कर संस्कृति का परचम,
हम हवाओं से बातें करते हैं ।।
गंगा और गोमती के दामन से,
हम मुहब्बत का बीज बोएँगे ।
वादा करते हैं राम -रहिमन से ,
यकजहती का चलन रखेंगे ।।
शाम का हुस्न अवध से चुन कर,
'ताज' से पैगाम- ए- मुहब्बत का ।
सुबह- ए- बनारस की ताजगी लेकर ,
देश को हम बनाएं जन्नत सा ।।
सूबा ये राम और कान्हा का ,
यहीं पर बुद्ध ज्ञान देते हैं ।
अवध की इस ज़मीं को हम यारों ,
वाले-कुम-अस्सलाम करते हैं ।।